समय बड़ी तेजी के साथ भागता रहता है इसे पकड़ना असंभव कार्य है जो समय को पकड़ना जानते हैं उन्हें काल ज्ञान तत्वदर्शी कहते हैं ऐसे ही बहुत कम साधु, सन्यासी रहे हैं जिन्हें काल ज्ञान का या जिसे हम भूत
भविष्य वर्तमान कहते हैं का ज्ञान होता है इस प्रकार के काल,का ज्ञान रावण, विश्वामित्र ,वशिष्ट, कणाद, स्वामी विशुद्धानंद, स्वामी निखिलेश्वरानंद
जी, शंकराचार्य ,श्री कृष्ण और भी अनेक अनेक योगी यति सन्यासियों को अपने समय में रहा है और जिसने भी इस समय को जान लिया वह बड़े से
बड़ा ऋषि, मुनि, योगी, यति सन्यासी बना क्योंकि जब हमें पहले से ही पता होता है कि हमारा कब अच्छा समय चल रहा है और कब खराब समय चल रहा है और उस खराब समय में कौन-कौन सी
घटनाएं घटित होंगी और इन घटनाओं को किस प्रकार से रोका जा सकता है तब वह साधु सन्यासी पहले से ही उन तपस्याओं को पूर्ण रूप से सिद्ध कर लेते हैं जिससे के उन खराब घटनाओं का उनके जीवन में कोई भी
प्रभाव व्याप्त नहीं हो पाता यह एक बहुत बड़ी स्थिति है जिससे के हम महान से महानतम बनने की ओर अग्रसर हो सकते हैं वास्तव में काल पर विजय प्राप्त करना बहुत ही कठिन कार्य क्योंकि जिसने काल को
जीत लिया उसे जीवन में कभी भी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ता और ऐसा व्यक्ति जीवन के उस चक्र को तोड़ देता है जिसमें कहा जाता है कि जीवन में सफलता और असफलता दोनों एक ही सिक्के का पहलू है
लेकिन यहां यह सब बातें पीछे छूट जाती हैं और जीवन में केवल असफलता ही सफलता मिलती जाती है लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए बहुत अधिक कठिन
साधनाओं का सहारा लेना पड़ता है इस साधना के लिए ऐसे आचार्य की जरूरत पड़ती है जिसने स्वयं काल ज्ञान प्राप्त कर रखा हो या काल पर विजय प्राप्त कर रखी हो और ऐसा आचार्य,सन्त, गुरु
मिलना बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि यह जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि होती है इसे प्राप्त होने पर हम अपनी इच्छा के अनुसार जितने साल तक जीवित रहना चाहे जीवित रह सकते हैं दूसरे रूप में इसे प्राण
संजीवनी क्रिया भी कह सकते हैं जिसके माध्यम से शरीर के गले सड़े हिस्सों को दोबारा से रिपेयर करके पूरी तरह नया बना दिया जाता है और इस प्रकार से हमें एक नया शरीर प्राप्त हो जाता है और इस प्रकार से आगे
बढ़ते हुए हम अपने जीवन को जहां ले जाना चाहिए जिस और ले जाना चाहिए उस और मोड़ कर अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त कर लेते हैं कई बार कोई साधना या तपस्या 2000 वर्ष या 5000
वर्ष की होती है तब हम इसी काल ज्ञान के माध्यम से अपने शरीर को बार-बार नया बनाते हुए इतनी लंबी वर्षों की साधनाओं को संपन्न कर पाने में
समर्थ होते हैं अध्यात्म में आगे बढ़ते हुए जब हम कुंडलिनी जागरण करते हैं और उस कुंडली जागरण की क्रिया में नए नए अनुभव प्राप्त होते हैं जब हम आज्ञा चक्र पर पहुंचते हैं तब हमें सभी देवी देवताओं के
दर्शन होने लगते हैं हम पूरे ब्रह्मांड का एक पार्ट बन जाते हमें पहली बार एहसास होता है कि मैं भी इस सृष्टि में भागीदारी कर सकता हूं और जब सहस्त्रार चक्र तक पहुंचते हैं तब हमें हजारों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती
हैं उनमें से ही एक काल ज्ञान सिद्धि है जिसे प्राप्त होते ही हमें भूत वर्तमान और भविष्य साफ साफ दिखाई देने लगते हैं जैसे की हम किसी घटना को TV के ऊपर देखते हैं इसके बाद सहस्त्रार चक्र से अमृत की बूंद टपकना
शुरू हो जाती है जो हमारे शरीर की नालियों के माध्यम से पूरे शरीर में पहुंच जाती है जिसके कारण हमारे शरीर के सभी रोग समाप्त हो जाते हैं और हमें एक नया जीवन प्राप्त हो जाता है और इस प्रकार से हम समय
को अपनी मुट्ठी में बांध लेते हैं