महेन्द्रकाल में किये हुए कार्य स्वर्ण के समान श्रेष्ठ होतेहै अमृतकाल में
किये कार्य महेन्द्रकाल से कुछ कम श्रेष्ठ होते है अगर हम महेन्द्रकाल और अमृतकाल
के युवा और प्रौढ़काल का उपयोग करे तो बहुत अच्छा होगा क्योकि बालकाल
और शून्यकाल में काफी
कम शक्ति होती है जैसा कि नाम से विदित होता है कि बाल माने बच्चा और वृद्ध माने बूढ़ा ।जंत्री पंचांग में कितना भी बुरा समय दिया हो मगर इस समय का उपयोग प्रतिदिन किया जा सकता है लेकिन प्रतिदिन का अमृत और महेन्द्र काल अलग -2 होता है आप
जाने कि इस समय ज्ञान में सुबह 6am बजे से शाम 6pm बजे तक के समय को दिन में रखते है और शाम 6pm बजे से सुबह 6 amबजे तक के समय को रात्रि कहते है काल ज्ञान में इतनी सूक्ष्मता है कि एक
सेकण्ड के हजारवें हिस्से की भी बहुत वैल्यू है रावण ने इसका टैस्ट करके दिखाया था उसने पेड के सात पत्ते लिए और एक विशेष समय आने पर एक कील के द्वारा उन्हें छेद दिया तब पहला पत्ता स्वर्ण का बना दूसरा पत्ता चांदी का बना और तीसरा पत्ता ताम्बे का बना और
बांकी पत्ते ऐसे के ऐसे रह गए सोचिये पत्तो को छेदने में कितनाकम समय लगता है यहाँ उसी समयका आंकलन दिया जा रहा है कृपया पाठक गण विशेष कार्यो में परीक्षा ,यात्रा ,शुभ कार्य इत्यादि में इसका उपयोग कर लाभ प्राप्त कर सकते है ।इस समय का और भी बारीकी से विश्लेषण किया जा सकता है मगर स्थान आभाव के कारण देनासंभव नहीं है |